ज़िन्दगी की आखरी आरजू बस यही हैं।
तू सलामत रहें दुआँ बस यही हैं।
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नहीं है अब कोई जुस्तजू इस दिल में ए सनम, मेरी पहली और आखिरी आरज़ू बस तुम हो।
साक़ी मुझे भी चाहिए …. इक जाम-ए-आरज़ू …. कितने लगेंगे दाम …. ज़रा आँख तो मिला…!!
ना खुशी की तलाश है ना गम-ए-निजात की आरज़ू.. मै ख़ुद से ही नाराज हूँ तेरी नाराजगी के बाद..
सर से लगा के पाँव तलक दिल हुआ हूँ मैं याँ तक तो फ़न-ए-इश्क़ में कामिल हुआ हूँ मैं
किसको ख्वाहिश है ख्वाब बनके पलकों पे सजने की,… हम तो आरजू बनके तेरे दिल में बसना चाहते हैं ..
साँस रूक जाये भला ही तेरा इन्तज़ार करते-करते तेरे दीदार की आरज़ू हरगिज कम ना होगी
तमन्ना है मेरी कि आपकी आरज़ू बन जाऊं आपकी आँख का तारा ना सही आपकी आँख का आंसू बन जाऊं
ख्वाइश बस इतनी सी है की तुम मेरे लफ़्ज़ों को समझो… आरज़ू ये नही की लोग वाह वाह करें…
एक पत्थर की आरजू करके, खुदको ज़ख्मी बना लिया मैंने…
आरज़ू‘ तेरी बरक़रार रहे … दिल का क्या है रहे, रहे न रहे…