तमाम उम्र मुझे टूटना बिखरना था “फ़राज़”
वो मेहरबां भी कहाँ तक समेटता मुझे
इश्क की राह में दो हैं मंजिलें “फ़राज़”
या दिल में उतर जाना या दिल से उतर जाना.
तमाम उम्र मुझे टूटना बिखरना था “फ़राज़”
वो मेहरबां भी कहाँ तक समेटता मुझे
इश्क की राह में दो हैं मंजिलें “फ़राज़”
या दिल में उतर जाना या दिल से उतर जाना.