हम से बिछड़ के उस का तकब्बुर* बिखर गया फ़राज़
हर एक से मिल रहा है बड़ी आजज़ी* के साथ
- Ahmad Faraz Famous Shayari – ये सोच कर तेरी महफ़िल में
- Ahmad Faraz Sher O Shayari – हमारे सब्र की इंतहां क्या
- Ahmad Faraz Sher O Shayari – हमारे बाद नहीं आएगा तुम्हे
- Ahmad Faraz Sher O Shayari – हमने चाहा था इक ऐसे
- Ahmad Faraz Sher O Shayari – हम ने सुना था की दोस्त
- Ahmad Faraz Sher O Shayari – हम अपनी रूह तेरे जिस्म में
- Ahmad Faraz Sher O Shayari – हज़ूम ए गम मेरी फितरत
- Ahmad Faraz Sher O Shayari – हजूम ए दोस्तों से जब
Related Posts
ये सोच कर तेरी महफ़िल में चला आया हूँ फ़राज़ तेरी सोहबत में रहूँगा तो संवर जाऊंगा
हमारे सब्र की इंतहां क्या पूछते हो “फ़राज़” वो हम से लिपट के रो रहे थे किसी और के लिए
हमारे बाद नहीं आएगा तुम्हे चाहत का ऐसा मज़ा फ़राज़ तुम लोगों से खुद कहते फिरोगे की मुझे चाहो तो उसकी तरह कसूर नहीं इसमें कुछ भी उनका फ़राज़ हमारी चाहत ही इतनी थी की उन्हें गुरूर आ गया
हमने चाहा था इक ऐसे शख्स को “फराज” जो आइने से भी नाजुक था, मगर था पत्थर का
हम ने सुना था की दोस्त वफ़ा करते हैं फ़राज़ जब हम ने किया भरोसा तो रिवायत ही बदल गई
हम अपनी रूह तेरे जिस्म में छोड़ आए फ़राज़ तुझे गले से लगाना तो एक बहाना था
हज़ूम-ए-गम मेरी फितरत बदल नहीं सकती “फराज़”, मैं क्या करूं मुझे आदत है मुसकुराने की वो ज़हर देता तो दुनीया की नज़रों में आ जाता “फराज़” सो उसने यूँ किया के वक़्त पे दवा न दी
हजूम ए दोस्तों से जब कभी फुर्सत मिले अगर समझो मुनासिब तो हमें भी याद कर लेना
सौ बार मरना चाहा निगाहों में डूब कर ‘फ़राज़’ वो निगाह झुका लेते हैं हमें मरने नहीं देते
सवाब समझ कर वो दिल के टुकड़े करता है फ़राज़ गुनाह समझ कर हम उन से गिला नहीं करते मोहब्बत के अंदाज़ जुदा होते हैं फ़राज़ किसी ने टूट के चाहा और कोई चाह के टूट गया