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जिंदगी फिर कभी न मुस्कुराई बचपन की तरह
मैंने मिट्टी भी जमा की खिलौने भी लेकर देखे
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सफ़र से लौट जाना चाहता है
परिंदा आशियाना चाहता है
कोई स्कुल की घंटी बजा दे
ये बच्चा मुस्कुराना चाहता है। .
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Best Hindi Poem On Childhood, Bachpan Par Bahot Sundar Kavita
वो दिन भी क्या दिन थे,
काग़ज़ की कश्ती थी पानी का किनारा था,
खेलने की मस्ती थी ये दिल अवारा था,
कहाँ आ गए इस समझदारी के दलदल में,
वो नादान बचपन भी कितना प्यारा था।
जहां चाहा वहां रो लेते थे,
जहां चाहा वहां हंस लेते थे,
कभी पेंसिल गुम हो जाती थी,
तो कभी किसी की रबड़ चुरा लेते थे।
वो दिन भी क्या दिन थे,
झूठ बोला करते थे,
फिर भी मन के सच्चे थे,
ये तो उन दिनों की बातें है जब हम बच्चे थे।
न कुछ पाने की आशा थी,
न कुछ खोने का डर,
न कुछ ज़रूरी था,
ना किसी की ज़रूरत थी,
बस अपने सपनों का घर था,
और मां की मार का डर था।
वो दिन भी क्या दिन थे,
जब खुशियों का खजाना था,
चांद तारों की चाहत थी,
दादी मां की कहानी थी,
परियों का अपना फसाना था,
हर मौसम सुहाना था,
एक बचपन का जमाना था,
जिस में खुशियों का खजाना था..
चाहत चाँद को पाने की थी,
पर दिल तितली का दिवाना था..
जब थे दिन बचपन के,
वो थे बहुत सुहाने पल,
उदासी से न था नाता,
गुस्सा तो कभी ना आता था.
बारिश के पानी में खुद का एक जहाज़ था,
न शाम-सुबह का ठिकाना था,
न स्कूल जाने का मन था,
रोने की कोई वजह नहीं थी,
न हंसने का कोई बहाना था,
क्यों हो गए हम इतने बड़े,
इससे अच्छा तो हमारा बचपन का ज़माना था।
वो दिन भी क्या दिन थे।
वो दिन भी क्या दिन थे।
बाल दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!